
रायपुर। राजधानी रायपुर के मठपुरैना में SGF द्वार आयोजित हुई कुमिते सिलेक्शन प्रतियोगिता में एक ऐसी घटना घटी जिसकी जितनी निंदा की जाए वो कम है। प्रतियोगिता में इतनी बड़ी गलती की गई है, जिसे देखकर लग रहा है कि ये प्रतियोगिता बच्चों के भविष्य का निर्माण नहीं बल्कि उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करने के लिए रखी गई हो। इस प्रतियोगिता में जो भी हुआ वो अक्षम्य अपराध से कम नहीं है नियमों की धज्जियां उड़ा कर हुए इस खेल में किसी की जान भी जा सकती थी आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही रायपुर के मठपुरैना में SGF द्वारा कुमिते सिलेक्शन का आयोजन किया गया था।
कुमिते का समय बालकों के लिए सुबह 8 बजे और बालिकाओं के लिए 11 बजे का समय निर्धारित किया गया था। कुमिते में भाग लेने वाले बच्चों को वहां घंटों इंतजार करना पड़ा। बालकों की पारी 12 बजे दोपहर को आई और बालिकाओं को अपना हुनर दिखाने का मौका शाम 4:30 बजे मिला। कुमिते फाइट अनुशासित तरीके से खेली जाती है। लेकिन यहां यह फाइट नियमों को तांक पर रख कर कराई गई। कुमिते में भाग लेने सिर्फ़ ( martial) आर्ट्स के बच्चे fully equipped थे।इन बच्चों ने चेहरे गार्ड, हेड गार्ड ,निर्बोध गार्ड,ग्लव्स,गम गार्ड,पहने हुए थे। जबकि कुछ बच्चों ने कराटे यूनिफार्म तक नहीं पहनी हुई थी। आयोजक कमेटी ने इस बात को भी पूरी तरह नजरअंदाज किया।कुमिते में जोर से मारना जिसे हार्ड हिट कहते हैं allow नहीं है। लेकिन इस प्रतियोगिता में नियमों की धज्जियां उढ़ा कर फाइट कराई गई जिसमें एक बच्ची कू जान भी जा सकती थी।
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यहां जानकारी के लिए हम एक वीडियो शेयर कर रहे हैं जिसमें देखेंगे कि एक बच्ची ने दूसरी बच्ची को आंख पर हार्ड हिट किया है। वह बच्ची तुरंत हार्ड हिट से जख्मी हो गई, जिसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां कुछ बच्चों के मुंह से खून भी निकल रहा था किसी के दांत चोट लगने से टूट गए।
लेकिन इतना सब होने पर भी आयोजन कमेटी को कोई फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि शायद कुमिते आयोजन कमेटी के महान जानकार सदस्यों को ऐसा ही कुमिते कराने की आदत होगी। यहां जो कुमिते हो रहा था उसे bull fight (बैलों का झगड़ा कहना सही होगा ) परिजनों ने जब इस विषय में कुछ पूंछ्ना चाहा तो वहां बैठे निर्णायकों ने उनसे ही बदसलूकी करना शुरू कर दिया। उनसे अशब्द भी कहे, प्रतियोगिता के आयोजकों को जरा भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने ऐसा करके प्रतियोगी बच्चों के साथ खिलवाड़ की है अगर ऐसे आयोजन होते रहे तो फिर बच्चों का खेल के प्रति विश्वास उठना तय है।
